Wednesday, May 4, 2016

दिल की हलचल का लफ़्ज़ों में तब्दील हो जाना... जैसे इक सुकून को पाना


गम ना कर इस दुनिया का,
जो पाया है वो खोना है।
है तू मुसाफिर कुछ बरसों का,
अंत समय मिट्टी में मिल जाना है।
डर है क्यूँ तुझको तन्हाइयों का,
सच्चा दिल ही तो अकेले रोता है।
न मोल है तेरे इन आंसुओं का,
क्यूँ वफ़ा की अर्जियें लगाता है।
भरोसा न कर इस निष्ठुर ज़माने का,
लोग दिलों में अंगारें लिए चलते है।
है खिलौना तू उस ख़ुदा के हाँथों का,
वो बेख़बर तुम्हे नचाता है।
एक दिन तो एहसास होगा तेरी इबादत का,
तुम पे इनायत उसे कर जाना है।
है दूर नहीं किनारा साहिल का,
कश्ती को तो पार लगाना है।
है मज़बूत इरादा जीतने का,
मुसीबतों को तो रुख़सत हो जाना है।
है रास्ता कठिन मंज़िल का,
पर इन हौसलों को ख़ुशनुमा अंजाम तो पाना है। :)

~~ स्तुति

Thursday, May 5, 2011

Random


Forget those people who made you feel inferior, who touched your life but never felt for you, who talked to you but never cared for you, who fell for you but never reached you, who showed you dreams but never helped to make them true….....

Cherish those who made you feel better after getting any injury, pain or shock from life, healed you with their love & cares, made you stronger, held you tight when you were falling, supported you and filled you with liveliness unconditionally. :)

Friday, July 9, 2010

एक अदना गीली मिट्टी सी थी मै


एक अदना गीली मिट्टी सी थी मै
एक बेजान मामूली सी चीज़ थी मै
गर्दिशों में रहती थी मै
पानी के बहाव के साथ बहती गुजरती थी मै
तभी एक दिन मौला ने मुझे गीली मिट्टी से दिया बनाया
उसमे एक उजाले से भरा लौ जलाया
जिसे देख सारा जग जगमगाया
मौसम बहार का आया
फूलों ने खुशी से मुस्कुराया
पर न जाने कहाँ से तभी हुई एक ऐसी बरसात
उस रोशन लौ की रही न कोई बिसात
बिखर रही थी उसकी ज़ात
वो दिया तो भुझ गया
अदना सी मिट्टी में फिर से मिल गया
पर क्यू रोशन है जहान अभी भी
पता चला की दिखावे का तबस्सुम बचा है अभी
उदासी के सैकड़ों दियें जलते है सभी
अभी भी उस मौला के अंजुमन का अजब चिराग हूँ मै
ज़ख्मों पे ज़ख्म खा के भी खुशमिजाज़ हूँ मै

~~ स्तुति

Friday, October 9, 2009

एक रात जब ज़िन्दगी ने थामा मेरा हाँथ


एक रात जब ज़िन्दगी ने थामा मेरा हाँथ
और कुछ ऐसा कहा जो अभी तक है मुझे याद
उस रात का मंज़र कुछ अजीब था
कोई दोस्त न कोई रकीब था
ना कोई होश था ना मै माँमदहोश था
ना चाँद रोशन था न शमा ही जल रही थी
ना खामोशी थी ना आवाजे थी
तभी एक साया सा उभरा
हुबहू मेरा सा दिखता था
पर ना वो मै था ना वो मेरी परछाई थी
वो मेरे पास आने लगा
मै कुछ डरा सहमा घबराया
पर वो आगे बढ़ता रहा
उसने मेरा हाँथ थामा और मुझे अपनी तरफ खीचा
मेरे मुह से हलकी सी चीख निकली
और वो मुझे बादलों की ओर ले गया
झिलमिल सितारों के बीच ले गया
और मुझे और करीब ला के बोला
क्या तुम इस दुनिया की भीड़ में खोये हो!
क्यूँ इस डरपोक दुनिया की चाल से डरते हो?
क्यूँ रात के अँधेरे में सिसकते हो?
क्यूँ लोगों को मदद के लिए पुकारते हो?
क्यूँ इन ग़मों की शिकायते बेहिसाब करते हो?
क्यूँ हमेशा ख़ुशी से मुह मोड़ते हो?
क्यूँ औरों में अपने को तलाशते हो?
क्यूँ इन धुंधले बादलों में खुद चाँद नहीं ढूँढ़ते?
क्यूँ मंजिलों से नज़र हटा रास्तों में भटकते हो?
क्यूँ खुद को इतना तनहा लाचार समझते हो?
क्यूँ अपनी ज़िन्दगी को छोड़ मौत की राह पकड़ते हो?
लो अब थाम लो मेरा हाथ
ये साथ कभी ना छोड़ना
क्यूंकि इन अंधियारी रातों से दूर एक जहाँ और भी है
तारों चाँद से भरी एक निशा और भी है
यहीं कारवां थमता नहीं
चिडियों की चहकने से गूंजती
फूलों की खुशबुओं से महकती
तितलियों के रंगों से सजी
सूरज की रौशनी से नहाती
एक सुबह और भी है
ज़िन्दगी का हाँथ थामे
खुशियों को अपने दामन में समेटे
एक नयी स्तुति और भी है!!!! :)



~~ स्तुति

Thursday, August 20, 2009

खाव्बों की दुनिया


खाव्बों की दुनिया ना जाने कहाँ से आई ये धुंधले बादलों की दुनिया
घनघोर अँधेरे में उजली किरण सी दुनिया
काले आकाश में चमकते तारों की दुनिया
रेतीले मैदान में हरयाली की दुनिया
अँधेरी रात में जगमगाते जुगनुओं की दुनिया
धूल भरी आंधी में महकते फूलों की दुनिया
झुलसाती धूप में रिमज़िम फुहारों की दुनिया
उफनाते तूफान में गहराईयों की दुनिया
सिसकियों में गूंजती हसी की दुनिया
सन्नाटे में मीठी आवाज़ की दुनिया
हार में हार को हराने की दुनिया
हताशा में आशाओं की दुनिया
दिलों में कितने अरमानो की दुनिया
ख्वाबों की दुनिया ...........
न जाने कितने अफसानो की दुनिया
न जाने कहाँ से आई ये धुंधले बादलों की दुनिया

~~ स्तुति

जो इस भूल में रहते है कि हम भाग्य से आगे बढ़ते है,
उन्हें नहीं मालूम कि भाग्य भी उन्ही के साथ चलता है जो मेहनत करते है|
दुनिया के इस दस्तूर कि क्या दुहाई दूँ ,
लोग मशहूर को मगरूर कहते है|
हर कदम पर लोगों कि नफरत भरी निगाहें
हमे पीछे मुड़ने को मजबूर करती है
इस बेदर्द दुनिया में किसे कहे अपना
अपने ही अपनों को ठोकर मारकर दूर करते है
ज़िन्दगी के मुश्किल दौर में किस पर करे भरोसा
हमदर्द ही मरहम कि जगह माहुर देते है
क्यूँ करूँ इस ज़िन्दगी से इतनी शिकायत
हम इस ज़िन्दगी का सम्मान करते है
कुछ तो है इस ज़िन्दगी में खास
तो क्यूँ हम अपनी ज़िन्दगी कि शाम करते है
क्यूँ डरे इस काटों भरी महफिलों से
हम तो फूलों के रंगों से गुलशन को गुलज़ार करते है
काले बादलों के सायों में क्या छिपना
हम तो रोशिनी से प्यार करते है
कोई हो या न हो हमारे साथ
हम तो अपनी खुशियों का आगाज़ करते है
कुछ कर गुजरने की चाह में
हम ज़मीन आसमान एक करते है
चुनौतियों से क्या सिहरना
हम परों से नहीं हौसलों से उड़न भरते है
दुखों से हमे क्या चुभन
हम तो खुशियों को अपने दामन में समेटे रहते है
मौत को ज़िन्दगी का आखिरी पयान कहने वालों
हम तो जिंदादिली को ज़िन्दगी का आयाम कहते है
अपने पैरों पर खड़े होने को
हम अपना मुकाम कहते है
भाग्य के भरोसे रहने वालों
हम तुम्हे नाकाम कहते है !!!


~~ स्तुति